मुंबई के इस गुरुद्वारे में आख़िर क्यों होती है हर साल मधुबाला के नाम पर अरदास

https://ift.tt/3rWJZOn

जिसकी खूबसूरती देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे, जिसकी एक झलक देखने के लिए फैंस बेकरार रहते थे। जिसकी फिल्म देखने के लिए फैंस में गजब उत्साह रहता था, जिसकी एक आवाज सुनने के लिए बड़े-बड़े डायरेक्टर-निर्देशक भी इंतजार किया करते थे। जी हां.. हम बात कर रहे हैं गुजरे जमाने की मशहूर अभिनेत्री मधुबाला के बारे में। मधुबाला की खूबसूरती पर कई लोग फिदा थे और इससे भी ज्यादा पसंद करते थे उनकी लाजवाब एक्टिंग को। मधुबाला ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म ‘बसंत’ से की थी और अपनी पहली फिल्म से वह इंडस्ट्री में पहचान बनाने में कामयाब रही। इतना ही नहीं बल्कि उनकी शानदार एक्टिंग और खूबसूरत अदाओं ने हर किसी का दिल जीत लिया। मधुबाला का जन्म भले ही एक मुस्लिम परिवार में हुआ हो लेकिन उनकी आस्था गुरुनानक देव के प्रति ज्यादा थी।

गुरुनानक देव के लिए उनकी दीवानगी का ये आलम था कि आखिरी वक़्त तक मधुबाला के पर्स में "जपुजी साहिब" की किताब मौजूद थी। इस किताब को मधुबाला हर रोज पढ़ती थी,जिसे पढ़कर उन्हें बेहद सुकून मिलता था। फ़िल्म निर्माताओं से उनकी एक ही शर्त होती थी कि वे पूरे साल देश-दुनिया में कहीं भी शूटिंग करती रहेंगी लेकिन गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव यानी गुरुपर्व पर वह मुंबई के अंधेरी गुरुद्वारे में मौजूद रहेंगी. अपनी इस शर्त को वे प्रोड्यूसर के साथ होने वाले एग्रीमेंट में भी लिखवा लेती थीं

madhubala-759.jpg

वही मधुबाला के इस्लामिक होने के बावजूद उनकी गुरुनानक देव के लिए इस कदर की दीवानगी का खुलासा उस दौर के संगीत निर्देशक एस महेन्द्र ने किया था। एस महेन्द्र से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि, "जब एक दिन किसी फ़िल्म के सेट पर अगले शॉट की तैयारी चल रही थी। इस दौरान खाली वक़्त में मधुबाला ने अपने पर्स में से एक छोटी-सी किताब निकाली और अपना सिर दुपट्टे से ढककर उसे पढ़ने लगीं। जब कुछ देर बाद उन्हें सीन शूट के लिए बुलाया गया तब वो अपना पर्स और वह किताब मेरे जिम्मे छोड़ शॉट देने के लिए चली गईं। जब मैनें किताब खोलकर देखी तो वह फारसी भाषा में लिखा जपुजी साहिब था।

वही शूटिंग से फ़्री होने के बाद महेंद्र ने जब मधुबाला से इस बारे में पूछा तो मधुबाला ने बताया, "सब कुछ होने के बावजूद मैं भीतर से पूरी तरह टूट चुकी थी। तब एक दिन मेरे एक जानकार अंधेरी के गुरुद्वारे में ले गए। दर्शन के बाद वहां के ग्रंथी को जब मेरी परेशानी के बारे में बताया तो उन्होंने रोज जपुजी साहिब का पाठ करने का सुझाव दिया। चूंकि मुझे गुरमुखी नहीं आती, लिहाज़ा मैंने फारसी भाषा में छपी यह किताब मंगवाई। तबसे मैं इसे हर रोज पढ़ती हूं। वही इसको पढ़ने के बाद एक अजीब-सा सुकून व शांति मिलती है।"

madhu.jpg

अंधेरी गुरुद्वारे के ग्रंथी बताते हैं कि 1969 में अपनी मौत से सात साल पहले मधुबाला ने इच्छा जाहिर की थी कि वह गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव पर लंगर की सेवा देना चाहती हैं। उस दिन के लंगर पर जितना भी खर्च आता उसका चेक वह गुरुद्वारा कमेटी को दे देती और यह सिलसिला सात साल तक लगातार चलता रहा। उनकी मौत के बाद करीब छह साल तक उनके पिता ने यह सेवा संभाली। अब आलम यह है कि जब भी गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव होता है तो वहां पर श्रद्धालु अरदास में मधुबाला को लेकर कहते हैं कि, ‘है पातशाह, आपकी बच्ची मधुबाला की तरफ से लंगर-प्रशाद की सेवा हाजिर है, उसे अपने चरणों से जोड़े रखना।’ यानी कि मधुबाला भले ही इस दुनिया को अलविदा कह गई है लेकिन गुरुद्वारे में आज भी जीवित है।

यह भी पढ़ें-



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3IIL2Ix
https://ift.tt/3IIL2Ix
January 28, 2022 at 12:03AM

Comments

Popular posts from this blog

प्रियंका चोपड़ा से ऐश्वर्या राय, ये 7 एक्ट्रेस करा चुकी हैं सर्जरी, आखिरी वाली का नाम जान चौंक जाएंगे आप

'मैं भी उसके साथ मर गया...' 16 साल की बेटी की मौत, रुला देगा साउथ स्टार का ये पोस्ट